Tech Pani puri: 2011

Friday, March 4, 2011

क्या होता है सीवीसी ? कैसे रखता है भ्रष्टाचार पर नजर?

केंद्रीय सतर्कता आयोग या सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) एक परामर्शदात्री संस्था है। इसकी स्थापना केंद्र सरकार के विभागों में प्रशासनिक भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए की गई थी। इसकी सिफारिश संथानम समिति की अनुशंसा पर 1964 में कार्यपालिका के एक संकल्प के द्वारा की गई थी। पहले यह कोई संवैधानिक संस्था नहीं थी। 23 अगस्त 1998 को जारी राष्ट्रपति के अध्यादेश के द्वारा इसे संवैधानिक और बहुसदस्यीय बना दिया गया।

संसद ने 2003 में सीवीसी को एक संविधिक निकाय के रूप में मान्यता दे दी। इसके लिए संसद ने एक विधेयक पारित किया। 11 सितंबर 2003 को राष्ट्रपति की ओर से अनुमति दिए जाने के साथ ही केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 प्रभावी हो गया। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और अन्य सतर्कता आयुक्तों को राष्ट्रपति द्वारा र्दुव्‍यवहार या अयोग्यता सिद्ध होने के आधार पर पदच्युत किया जा सकता है। मगर, इससे पहले मामले को जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय भेजना होता है। केंद्रीय मंत्रिमंडल के 15 जनवरी 2009 को किए गए निर्णय के आधार पर केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) का वेतन 30000 रुपए प्रतिमाह से बढ़ाकर 90,000 रुपए कर दिया गया है। आयोग के सदस्यों का वेतन 23,000 रुपए से बढ़ाकर 60,000 रुपए कर दिया गया है।

बहुसदस्यीय निकाय है
केंद्रीय सतर्कता आयोग एक बहुसदस्यीय निकाय है। इसमें एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और दो अन्य सतर्कता आयुक्त सदस्य के रूप में होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा तीन सदस्यीय समिति की सिफारिश के आधार पर होती है। इसमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृहमंत्री, और लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल होते हैं। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को प्रशासनिक सहायता देने के लिए एक सचिव, पांच निदेशक या उप सचिव, तीन अवर सचिव सहित कुल 150 अधिकारी और कर्मचारी आयोग में पदस्थापित होते हैं। आयोग में ११ पद विभागीय जांच पड़ताल आयुक्तों के हैं।

ऐसा है संगठन
केंद्रीय सतर्कता आयोग एक ढांचे के रूप में कार्य करता है। इसमें इसका स्वयं का सचिवालय, मुख्य तकनीकी परीक्षक खंड और एक विभागीय जांच आयुक्त खंड है। सचिवालय: केंद्रीय सतर्कता आयोग के सचिवालय में भारत सरकार के अपर सचिव के स्तर के एक सचिव, संयुक्त सचिव स्तर के एक अपर सचिव, निदेशक/ उप सचिव स्तर के 10 अधिकारी और चार अवर सचिव होते हैं। इनके अलावा कार्यालय स्टाफ भी होता है।

मुख्य तकनीकी परीक्षक खंड: यह केंद्रीय सतर्कता आयोग का तकनीकी खंड है। इसमें मुख्य इंजीनियर स्तर के दो इंजीनियर तथा अन्य इंजीनियरिंग स्टाफ है। इनका कार्य मुख्य रूप से सभी प्रकार के सरकारी निर्माणों की जांच करना होता है। इसके अलावा ये किसी भी निर्माण कार्य से संबंधी शिकायत आने पर उस मामले की जांच करते हैं। यह खंड दिल्ली में संपत्तियों का मूल्यांकन करने में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की सहायता करता है।

विभागीय जांच आयुक्त
आयोग में विभागीय जांच आयुक्तों के 15 पद होते हैं। इसमें से 14 पद उप सचिव/निदेशक स्तर के हैं तथा एक पद भारत सरकार के संयुक्त सचिव के स्तर का है। ये सभी जांच आयुक्त लोक सेवकों के विरुद्ध प्रारंभ की गई विभागीय कार्रवाइयों में मौखिक जांच करने के लिए जांच अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं।

कौन हैं पीजे थॉमस
पीजे थॉमस केंद्रीय सतर्कता आयोग के ऐसे पहले आयुक्त हैं जिनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद आज पीजे थॉमस ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पद से इस्तीफा दे दिया है। इनका पूरा नाम पोलायिल जोसफ थॉमस है। थॉमस का जन्म 13 जनवरी 1951 को हुआ था। वे भौतिक विज्ञान में एमएससी और अर्थशास्त्र में एमए हैं। उन्होंने वर्ष 1973 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदभार संभाला। थॉमस पर इससे पहले पामोलीन तेल के आयात के घपले के मामले में आरोप लग चुके हैं। 1992 में जब वे केरल के फूड एंड सिविल सप्लाई सचिव थे, तब यह घोटाला हुआ था। इस घोटाले से सरकार को दो करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ था। हाल ही में खुले 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भी उनका नाम सामने आया है। इस घोटाले के दौरान वह टेलीकॉम सचिव के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे थे। उनकी नियुक्ति के दौरान विपक्ष ने आपत्ति जताई थी, जिसे नजरअंदाज कर उन्हें सीवीसी बना दिया गया। थॉमस को डर है कि यदि वह इस्तीफा दे देते हैं तो सीबीआई उनसे पूछताछ कर सकती है। साथ ही जरूरत पड़ने पर सीबीआई उनकी गिरफ्तारी भी कर सकती है।

इन पदों पर थॉमस दे चुके हैं अपनी सेवाएं

सचिव, दूरसंचार विभाग, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय।

सचिव, संसदीय कार्य मंत्रालय, नई दिल्ली।

मुख्य सचिव, केरल सरकार।

अपर मुख्य सचिव (उच्चतर शिक्षा)

सरकार के मुख्य निर्वाचक अधिकारी एवं प्रधान सचिव।

सचिव, केरल सरकार।

निदेशक, मात्स्यिकी।

प्रबंध निदेशक, केरल राज्य काजू विकास निगम लिमिटेड।

सचिव टैक्स (राजस्व बोर्ड)

जिलाधीश, एर्नाकुलम।

सचिव, केरल खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड।

उप जिलाधीश, फोर्ट, कोचीन।

सीवीसी के कार्य और अधिकार
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत केंद्रीय सतर्कता आयोग किसी लोक सेवक के किसी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने की जांच में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना के कार्यो की निगरानी करता है।

लोक सेवकों के विरुद्ध चल रही जांच की समीक्षा करना और अन्वेषण कार्य की प्रगति की समीक्षा करना भी सीवीसी का कार्य है।

किसी ऐसे कार्य की जांच करवाना या करना, जिसमें किसी लोक सेवक के कार्य में संदेह हो, या यह लग रहा हो कि यहां कार्य भ्रष्टाचार पूर्ण तरीके से किया गया है।

अनुशासनिक मामलों में जांच करने, अपील, पुन:निरीक्षण आदि के विभिन्न चरणों या स्तर पर अन्य जांच अधिकारियों को निष्पक्ष सलाह देना भी इसके कार्यक्षेत्र में आता है।

भारत सरकार के मंत्रालय अथवा विभागों में भ्रष्टाचार निवारण संबंधी कार्य की जांच और निगरानी करना।

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय दोनों के निदेशक और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना में पुलिस अधीक्षक तथा इससे ऊपर के अधिकारियों की चयन समितियों की अध्यक्षता करना।

किसी भी जनहित प्रकटीकरण तथा मुखबीर की सुरक्षा के अंतर्गत प्राप्त शिकायतों की जांच करना अथवा करवाना और उचित कार्रवाई की सिफारिश करना।

.. और दुरुपयोग

पद पर रहते हुए सीवीसी काम करवाने के बदले में घूस की मांग कर सकता है। चूंकि यह सीबीआई की जांच की निगरानी करता है, इसलिए संभव है कि वह जांच में दखलंदाजी कर सकता है। पद का दुरुपयोग करते हुए नियम और कानूनों का उल्लंघन कर सकता है। अपने काम को नजरअंदाज कर सकता है और निगरानी और सलाह देने में ढुलमुल रवैया अपना सकता है।

Sunday, February 6, 2011

45 मिनट में कैसे लुटा 2जी

नई दिल्ली. अशोक रोड। संचार भवन। पहली मंजिल। दस जनवरी 2008। वक्त दोपहर पौने तीन बजे। संचार मंत्री एंदीमुथु राजा के निजी सहायक आरके चंदोलिया का दफ्तर। राजा के हुक्म से एक प्रेस रिलीज जारी होती है। 2 जी स्पेक्ट्रम 3.30 से 4.30 के बीच जारी होगा। तुरंत हड़कंप मच गया। सिर्फ 45 मिनट तो बाकी थे..

वह एक आम दिन था। कुछ खास था तो सिर्फ ए. राजा की इस भवन के दफ्तर में मौजूदगी। राजा यहां के अंधेरे और बेरौनक गलियारों से गुजरने की बजाए इलेक्ट्रॉनिक्स भवन के चमचमाते दफ्तर में बैठना ज्यादा पसंद करते थे। पर आज यहां विराजे थे। 2जी स्पेक्ट्रम के लिए चार महीने से चक्कर लगा कंपनियों के लोग भी इन्हीं अंधेरे गलियारों में मंडराते देखे गए।

लंच तक माहौल दूसरे सरकारी दफ्तरों की तरह सुस्त सा रहा। पौने तीन बजते ही तूफान सा आ गया। गलियारों में भागमभाग मच गई। मोबाइल फोनों पर होने वाली बातचीत चीख-पुकार में तब्दील हो गई। वे चंदोलिया के दफ्तर से मिली अपडेट अपने आकाओं को दे रहे थे। साढ़े तीन बजे तक सारी खानापूर्ति पूरी की जानी थी। उसके एक घंटे में अरबों-खरबों रुपए के मुनाफे की लॉटरी लगने वाली थी।

जनवरी की सर्दी में कंपनी वालों के माथे से पसीना चू रहा था। मोबाइल पर बात करते हुए आवाज कांप रही थी। सबकी कोशिश सबसे पहले आने की ही थी। लाइसेंस के लिए कतार का कायदा फीस जमा करने के आधार पर तय होना था। फीस भी कितनी- सिर्फ 1658 करोड़ रुपए का बैंक ड्राफ्ट। साथ में बैंक गारंटी, वायरलेस सर्विस ऑपरेटर के लिए आवेदन, गृह मंत्रालय का सिक्यूरिटी क्लीरेंस, वाणिज्य मंत्रालय के फॉरेन इंवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) का अनुमति पत्र.। ऐसे करीब एक दर्जन दस्तावेज जमा करना भी जरूरी था। वक्त सिर्फ 45 मिनट...

परदे के आगे की कहानी

25 सितंबर 2007 तक स्पेक्ट्रम के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों में से जिन्हें हर प्रकार से योग्य माना गया उन कंपनियों के अफसरों को आठवीं मंजिल तक जाना था। डिप्टी डायरेक्टर जनरल (एक्सेस सर्विसेज) आर के श्रीवास्तव के दफ्तर में। यहीं मिलने थे लेटर ऑफ इंटेट। फिर दूसरी मंजिल के कमेटी रूम में बैठे टेलीकॉम एकाउंट सर्विस के अफसरों के सामने हाजिरी। यहां दाखिल होने थे 1658 करोड़ रुपए के ड्राफ्ट के साथ सभी जरूरी कागजात। यहां अफसर स्टॉप वॉच लेकर बैठे थे ताकि कागजात जमा होने का समय सेकंडों में दर्ज किया जाए।

किसी के लिए भी एक-एक सेकंड इतना कीमती इससे पहले कभी नहीं था। सबकी घड़ियों में कांटे आगे सरक रहे थे। बेचैनी, बदहवासी और अफरातफरी बढ़ गई थी। चतुर और पहले से तैयार कंपनियों के तजुर्बेकार अफसरों ने इस सख्त इम्तहान में अव्वल आने के लिए तरकश से तीर निकाले। अपनी कागजी खानापूर्ति वक्त पर पूरी करने के साथ प्रतिस्पर्धी कंपनियों के लोगों को अटकाना-उलझाना जरूरी था। अचानक संचार भवन में कुछ लोग नमूदार हुए। ये कुछ कंपनियों के ताकतवर सहायक थे। दिखने में दबंग।

हट्टे-कट्टे। कुछ भी कर गुजरने को तैयार। इनके आते ही माहौल गरमा गया। इन्हें अपना काम मालूम था। अपने बॉस का रास्ता साफ रखना, दूसरों को रोकना। लिफ्ट में पहले कौन दाखिल हो, इस पर झगड़े शुरू हो गए। धक्का-मुक्की होने लगी। सबको वक्त पर सही टेबल पर पहुंचने की जल्दी थी। पूर्व टेलीकॉम मंत्री सुखराम की विशेष कृपा के पात्र रहे हिमाचल फ्यूचरस्टिक कंपनी (एचएफसीएल) के मालिक महेंद्र नाहटा की तो पिटाई तक हो गई। उन्हें कतार से निकाल कर संचार भवन के बाहर धकिया दिया गया।

दबंगों के इस डायरेक्ट-एक्शन की चपेट में कई अफसर तक आ गए। किसी के साथ हाथापाई हुई, किसी के कपड़े फटते-फटते बचे। आला अफसरों ने हथियार डाल दिए। फौरन पुलिस बुलाई गई। घड़ी की सुइयां तेजी से सरक रही थीं। हालात काबू में आते-आते वक्त पूरा हो गया। जो कंपनियां साम, दाम, दंड, भेद के इस खेल में चंद मिनट या सेकंडों से पीछे रह गईं, उनके नुमांइदे अदालत जाने की घुड़कियां देते निकले।

लुटे-पिटे अंदाज में। एक कंपनी के प्रतिनिधि ने आत्महत्या कर लेने की धमकी दी। कई अन्य कंपनियों के लोग वहीं धरने पर बैठ गए। पुलिस को बल प्रयोग कर उन्हें हटाना पड़ा। आवेदन करने वाली 46 में से केवल नौ कंपनियां ही पौन घंटे के इस गलाकाट इम्तहान में कामयाब रहीं। इनमें यूनिटेक, स्वॉन, डाटाकॉम, एसटेल और श्ििपंग स्टॉप डॉट काम नई कंपनियां थीं जबकि आइडिया, टाटा, श्याम टेलीलिंक और स्पाइस बाजार में पहले से डटी थीं।

एचएफसीएल, पाश्र्वनाथ बिल्डर्स और चीता कारपोरेट सर्विसेज के आवेदन खारिज हो गए। बाईसेल के बाकी कागज पूरे थे सिर्फ गृहमंत्रालय से सुरक्षा जांच का प्रमाणपत्र नदारद था। सेलीन इंफ्रास्ट्रक्चर के आवेदन के साथ एफआईपीबी का क्लियरेंस नहीं था। बाईसेल के अफसर छाती पीटते रहे कि प्रतिद्वंद्वियों ने उनके खिलाफ झूठे केस बनाकर गृह मंत्रालय का प्रमाणपत्र रुकवा दिया। उस दिन संचार भवन में केवल लूटमार का नजारा था। पौन घंटे का यह एपीसोड कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा।

परदे के पीछे की कहानी

इसी दिन। सुबह नौ बजे। संचार मंत्री ए. राजा का सरकारी निवास। कुछ लोग नाश्ते के लिए बुलाए गए थे। इनमें टेलीकॉम सेक्रेट्री सिद्धार्थ बेहुरा, डीडीजी (एक्सेस सर्विसेज) आर के श्रीवास्तव, मंत्री के निजी सहायक आर. के. चंदोलिया, वायरलेस सेल के चीफ अशोक चंद्रा और वायरलेस प्लानिंग एडवाइजर पी. के. गर्ग थे।

कोहरे से भरी उस सर्द सुबह गरमागरम चाय और नाश्ते का लुत्फ लेते हुए राजा ने अपने इन अफसरों को अलर्ट किया। राजा आज के दिन की अहमियत बता रहे थे। खासतौर से दोपहर 2.45 से 4.30 बजे के बीच की। राजा ने बारीकी से समझाया कि कब क्या करना है और किसके हिस्से में क्या काम है? चाय की आखिरी चुस्की के साथ राजा ने बेफिक्र होकर कहा कि मुझे आप लोगों पर पूरा भरोसा है। अफसर खुश होकर बंगले से बाहर निकले और रवाना हो गए।

दोपहर तीन बजे। संचार भवन। आठवीं मंजिल। एक्सेस सर्विसेज का दफ्तर। फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ डीडीजी (एक्सेस सर्विसेज) आर. के. श्रीवास्तव थे। यहां मौजूद अफसरों को चंदोलिया के कमरे में तलब किया गया। मंत्री के ऑफिस के ठीक सामने चंदोलिया का कक्ष है। एक्शन प्लान के मुताबिक सब यहां इकट्ठे हुए। इनका सामना स्वॉन टेलीकॉम और यूनिटेक के आला अफसरों से हुआ। चंदोलिया ने आदेश दिया कि इन साहेबान से ड्राफ्ट और बाकी कागजात लेकर शीर्ष वरीयता प्रदान करो। बिना देर किए स्वॉन को पहला नंबर मिला, यूनिटेक को दूसरा।

सबकुछ इत्मीनान से। यहां कोई धक्कामुक्की और अफरातफरी नहीं मची। बाहर दूसरी कंपनियों को साढ़े तीन बजे तक जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने में पसीना आ रहा था। अंदर स्वॉन और यूनिटेक को पंद्रह मिनट भी नहीं लगे। इन कंपनियों को पहले ही मालूम था कि करना क्या है। इसलिए इनके अफसर चंदोलिया के दफ्तर से प्रसन्नचित्त होकर विजयी भाव से मोबाइल कान से लगाए बाहर निकले। दूर कहीं किसी को गुड न्यूज देते हुए। 45 मिनट के तेज रफ्तार घटनाक्रम ने एक लाख 76 हजार करोड़ रुपए के घोटाले की कहानी लिख दी थी। राजा के लिए बेहद अहम यह दिन सरकारी खजाने पर बहुत भारी पड़ा था।

एक महिला, 9 फोन लाइनें, 300 दिन, 5851 कॉल्स

फोन कॉल्स में दर्ज फरेब

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की मुख्य किरदार नीरा राडिया के नौ टेलीफोन 300 दिन तक आयकर विभाग ने टैप किए। कुल 5,851 कॉल्स रिकार्ड की गईं। इनमें से सौ का रिकॉर्ड लीक हो चुका है। अपने पाठकों के लिए भास्कर प्रस्तुत कर रहा है - टेप हुई गोपनीय बातचीत के मुख्य अंश। साथ में, इससे जुड़े संपादकों और किरदारों की सफाई भी। ताकि पता चले कि दुनिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले खुद क्या कर रहे हैं।