केंद्रीय सतर्कता आयोग या सेंट्रल विजिलेंस कमीशन (सीवीसी) एक परामर्शदात्री संस्था है। इसकी स्थापना केंद्र सरकार के विभागों में प्रशासनिक भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए की गई थी। इसकी सिफारिश संथानम समिति की अनुशंसा पर 1964 में कार्यपालिका के एक संकल्प के द्वारा की गई थी। पहले यह कोई संवैधानिक संस्था नहीं थी। 23 अगस्त 1998 को जारी राष्ट्रपति के अध्यादेश के द्वारा इसे संवैधानिक और बहुसदस्यीय बना दिया गया।
संसद ने 2003 में सीवीसी को एक संविधिक निकाय के रूप में मान्यता दे दी। इसके लिए संसद ने एक विधेयक पारित किया। 11 सितंबर 2003 को राष्ट्रपति की ओर से अनुमति दिए जाने के साथ ही केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम 2003 प्रभावी हो गया। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और अन्य सतर्कता आयुक्तों को राष्ट्रपति द्वारा र्दुव्यवहार या अयोग्यता सिद्ध होने के आधार पर पदच्युत किया जा सकता है। मगर, इससे पहले मामले को जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय भेजना होता है। केंद्रीय मंत्रिमंडल के 15 जनवरी 2009 को किए गए निर्णय के आधार पर केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (अध्यक्ष) का वेतन 30000 रुपए प्रतिमाह से बढ़ाकर 90,000 रुपए कर दिया गया है। आयोग के सदस्यों का वेतन 23,000 रुपए से बढ़ाकर 60,000 रुपए कर दिया गया है।
बहुसदस्यीय निकाय है
केंद्रीय सतर्कता आयोग एक बहुसदस्यीय निकाय है। इसमें एक केंद्रीय सतर्कता आयुक्त और दो अन्य सतर्कता आयुक्त सदस्य के रूप में होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा तीन सदस्यीय समिति की सिफारिश के आधार पर होती है। इसमें प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृहमंत्री, और लोकसभा में विपक्ष के नेता शामिल होते हैं। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त को प्रशासनिक सहायता देने के लिए एक सचिव, पांच निदेशक या उप सचिव, तीन अवर सचिव सहित कुल 150 अधिकारी और कर्मचारी आयोग में पदस्थापित होते हैं। आयोग में ११ पद विभागीय जांच पड़ताल आयुक्तों के हैं।
ऐसा है संगठन
केंद्रीय सतर्कता आयोग एक ढांचे के रूप में कार्य करता है। इसमें इसका स्वयं का सचिवालय, मुख्य तकनीकी परीक्षक खंड और एक विभागीय जांच आयुक्त खंड है। सचिवालय: केंद्रीय सतर्कता आयोग के सचिवालय में भारत सरकार के अपर सचिव के स्तर के एक सचिव, संयुक्त सचिव स्तर के एक अपर सचिव, निदेशक/ उप सचिव स्तर के 10 अधिकारी और चार अवर सचिव होते हैं। इनके अलावा कार्यालय स्टाफ भी होता है।
मुख्य तकनीकी परीक्षक खंड: यह केंद्रीय सतर्कता आयोग का तकनीकी खंड है। इसमें मुख्य इंजीनियर स्तर के दो इंजीनियर तथा अन्य इंजीनियरिंग स्टाफ है। इनका कार्य मुख्य रूप से सभी प्रकार के सरकारी निर्माणों की जांच करना होता है। इसके अलावा ये किसी भी निर्माण कार्य से संबंधी शिकायत आने पर उस मामले की जांच करते हैं। यह खंड दिल्ली में संपत्तियों का मूल्यांकन करने में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की सहायता करता है।
विभागीय जांच आयुक्त
आयोग में विभागीय जांच आयुक्तों के 15 पद होते हैं। इसमें से 14 पद उप सचिव/निदेशक स्तर के हैं तथा एक पद भारत सरकार के संयुक्त सचिव के स्तर का है। ये सभी जांच आयुक्त लोक सेवकों के विरुद्ध प्रारंभ की गई विभागीय कार्रवाइयों में मौखिक जांच करने के लिए जांच अधिकारी के रूप में कार्य करते हैं।
कौन हैं पीजे थॉमस
पीजे थॉमस केंद्रीय सतर्कता आयोग के ऐसे पहले आयुक्त हैं जिनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद आज पीजे थॉमस ने केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पद से इस्तीफा दे दिया है। इनका पूरा नाम पोलायिल जोसफ थॉमस है। थॉमस का जन्म 13 जनवरी 1951 को हुआ था। वे भौतिक विज्ञान में एमएससी और अर्थशास्त्र में एमए हैं। उन्होंने वर्ष 1973 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदभार संभाला। थॉमस पर इससे पहले पामोलीन तेल के आयात के घपले के मामले में आरोप लग चुके हैं। 1992 में जब वे केरल के फूड एंड सिविल सप्लाई सचिव थे, तब यह घोटाला हुआ था। इस घोटाले से सरकार को दो करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ था। हाल ही में खुले 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भी उनका नाम सामने आया है। इस घोटाले के दौरान वह टेलीकॉम सचिव के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे थे। उनकी नियुक्ति के दौरान विपक्ष ने आपत्ति जताई थी, जिसे नजरअंदाज कर उन्हें सीवीसी बना दिया गया। थॉमस को डर है कि यदि वह इस्तीफा दे देते हैं तो सीबीआई उनसे पूछताछ कर सकती है। साथ ही जरूरत पड़ने पर सीबीआई उनकी गिरफ्तारी भी कर सकती है।
इन पदों पर थॉमस दे चुके हैं अपनी सेवाएं
सचिव, दूरसंचार विभाग, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय।
सचिव, संसदीय कार्य मंत्रालय, नई दिल्ली।
मुख्य सचिव, केरल सरकार।
अपर मुख्य सचिव (उच्चतर शिक्षा)
सरकार के मुख्य निर्वाचक अधिकारी एवं प्रधान सचिव।
सचिव, केरल सरकार।
निदेशक, मात्स्यिकी।
प्रबंध निदेशक, केरल राज्य काजू विकास निगम लिमिटेड।
सचिव टैक्स (राजस्व बोर्ड)
जिलाधीश, एर्नाकुलम।
सचिव, केरल खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड।
उप जिलाधीश, फोर्ट, कोचीन।
सीवीसी के कार्य और अधिकार
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के अंतर्गत केंद्रीय सतर्कता आयोग किसी लोक सेवक के किसी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने की जांच में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना के कार्यो की निगरानी करता है।
लोक सेवकों के विरुद्ध चल रही जांच की समीक्षा करना और अन्वेषण कार्य की प्रगति की समीक्षा करना भी सीवीसी का कार्य है।
किसी ऐसे कार्य की जांच करवाना या करना, जिसमें किसी लोक सेवक के कार्य में संदेह हो, या यह लग रहा हो कि यहां कार्य भ्रष्टाचार पूर्ण तरीके से किया गया है।
अनुशासनिक मामलों में जांच करने, अपील, पुन:निरीक्षण आदि के विभिन्न चरणों या स्तर पर अन्य जांच अधिकारियों को निष्पक्ष सलाह देना भी इसके कार्यक्षेत्र में आता है।
भारत सरकार के मंत्रालय अथवा विभागों में भ्रष्टाचार निवारण संबंधी कार्य की जांच और निगरानी करना।
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय दोनों के निदेशक और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना में पुलिस अधीक्षक तथा इससे ऊपर के अधिकारियों की चयन समितियों की अध्यक्षता करना।
किसी भी जनहित प्रकटीकरण तथा मुखबीर की सुरक्षा के अंतर्गत प्राप्त शिकायतों की जांच करना अथवा करवाना और उचित कार्रवाई की सिफारिश करना।
.. और दुरुपयोग
पद पर रहते हुए सीवीसी काम करवाने के बदले में घूस की मांग कर सकता है। चूंकि यह सीबीआई की जांच की निगरानी करता है, इसलिए संभव है कि वह जांच में दखलंदाजी कर सकता है। पद का दुरुपयोग करते हुए नियम और कानूनों का उल्लंघन कर सकता है। अपने काम को नजरअंदाज कर सकता है और निगरानी और सलाह देने में ढुलमुल रवैया अपना सकता है।